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के डी सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :71
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13312
आईएसबीएन :9788180317125

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यह किताब एक ऐसे लेखक की है जो लेखन की दुनिया का पेशेवर बाशिन्दा नहीं है

यह किताब एक ऐसे लेखक की है जो लेखन की दुनिया का पेशेवर बाशिन्दा नहीं है, फिर भी गद्य की एकदम ताजी पृष्ठभूमि से आया है, जहाँ विद्यार्थी जीवन के हल्के-फुल्के और रोचक अनुभवों के छोटे-छोटे टुकड़े हैं। उसने स्वयं कहा है कि 'यह उपन्यास नहीं है' और मैं इस तरह की कोशिश को 'विधाओं में एक तोड़-फोड़' कहता हूँ। यह तोड़-फोड़ सार्थक है, समर्थ है और पठनीय है। नये लोग कविता की तरह गद्य में भी नयी संरचना लेकर आयेंगे तो निश्चित ही समृद्धि आयेगी-भाषा में, रूप में और विन्यास में भी।

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